16 सितंबर 2012

आनन्द मोहन (पूर्व सांसद) - कविता

जो अपना हक लुटते देख भी विवश हो,
जो अस्मत लुटने पर भी अवश हो,
वह बेचारा ‘कमजोर’ है.

जो पेट की आग बुझाने,
कुछ सेर अनाज चुराए,
जो अपनी इज्जत ढंकने,
वस्त्र के चंद टुकड़े उडाये,
वह मजबूर ‘चोर’ है.

जो औरों का हक मारकर भी न शर्माए,
जो किसी की लाज लूटकर भी न लजाये,
वह ‘सीनाजोर’ है.

हर कमजोर और चोर के लिए,
पुलिस, हथकड़ी और जेल है.
लेकिन सीनाजोर और महाचोर के लिए,
देश का क़ानून फेल है.

जो चांदी से चौंधियाकर थाना खरीद ले,
जो सोने के सिक्कों से कोर्ट से छूट ले,
वह ‘निरपराध’ है.

जो मार खाकर भी चुप रह ले,
जो सब कुछ लुटाकर भी सह ले,
उसका ही ‘अपराध’ है.

फिर ऐसे ही अपराधियों के लिए,
बिहार से लेकर तिहाड़ तक का जेल है,
डंडा-बेड़ी और सेल है.

उनके लिए भी जेल है-
जो सड़ी-गली व्यवस्था के ‘विद्रोही’ होते हैं,
और शासन की नजर में ‘देश-द्रोही’ होते हैं.

उनके लिए जेल नहीं है-
जो हर गुनाह के बाद भी शासन के चाटुकार
और सत्ता के आग्रही होते हैं.

 --आनंद मोहन, पूर्व सांसद
  मंडल कारा, सहरसा.

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