8 सितंबर 2012

निर्णय लेने व कर्म करने की ईश्वर ने दे रखी है पूरी स्वतंत्रता : कालिंदी भारती


सहरसा,:- परमात्मा ने मनुष्य को निर्णय लेने व कर्म करने की पुरी स्वतंत्रता दे रखी है। वो अपनी दिव्य शक्ति से किसी से भी कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं छीनते हैं। जरूरत पड़ने पर उचित राह दिखाते हैं। लोभ, ईष्र्या, अहंकार मनुष्य को बर्बाद कर देता है। महाभारत में भी ऐसा हुआ। दुर्योधन मदांध हो चुका था। कृष्ण के पास कौरवों के संहार के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था।उक्त बातें आशुतोष महराज की शिष्या कालिंदी भारती ने शुक्रवार को पटेल मैदान में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से नौ दिवसीय श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कही।सुश्री भारती ने कहा कि कृष्ण ने महाभारत के प्रलयंकारी युद्ध को रोकने का हरसंभव प्रयास किया। युद्ध से पूर्व शांतिदूत बनकर गये और दुर्योधन जैसे दुराचारी को विनम्रतापूर्वक समझाया। आधे राज्य की जगह मात्र पांच गांव में समझौता करने के लिए तैयार हो गये। कौरवों को धनहानि, जनहानि यहां तक की सर्वनाश की चेतावनी भी दे डाली। कौरव तब भी नहीं मानें तो अपना अपना विराट रुप दिखाया। साम, दाम, दंड के बावजूद बात नहीं बनी।उन्होंने कहा कि शरीर के किसी अंग के सड़ जाने के बाद विष के प्रभाव से दूसरे अंगों को बचाने के लिए चिकित्सक सड़े अंग को काटने का कठोर निर्णय लेते हैं। कौरव भी तत्कालीन समाज का विषाक्त अंग बन चुका था। लाक्षागृह की आग में अपने भाइयों को झोंक देने में उसे जरा संकोच नहीं हुआ। भरी सभा में माता समान भाभी को निर्वस्त्र करते हुए उसके हाथ नहीं कांपे। तब ऐसे दुराचारी के समूल नाश का निर्णय श्रीकृष्ण को लेना पड़ा।उन्होंने कहा कि भगवान भाव के भूखे हैं। जो भी उन्हें भाव से पुकारता है, वे उनके पास पहुंच जाते हैं। मनुष्य ईश्वर से मिलना तो चाहता है किंतु, उसे रास्ता पता नहीं है। सद्गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता है और ज्ञान के बगैर कोई भवसागर पार नहीं कर सकता।प्रतिकूल मौसम के बावजूद श्रद्धालुओं के भीड़ प्रवचन सुनने के लिए डटी रही। इस मौके पर कथा स्थल प्रभारी स्वामी धनंजयानंद जी, निरीक्षक स्वामी सुकर्मानंद जी, यादवेंन्द्रनंद जी आदि मौजूद थे।










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