15 अक्टूबर 2012

पुलिस की तानाशाही


आज सहरसा में पुलिस की बर्बरता की इंतहा पर लोगों का गुस्सा न केवल फूटा बल्कि लोगों ने सदर अस्पताल में घंटों बबाल भी काटे और मौके पर पहुंचे तीन अधिकारियों को घंटों बंधक बनाए रखा । गुस्साए लोगों का आरोप है की बीते 13 अक्तूबर को एक निर्दोष की गिरफ्तारी कर बनगांव थाने की पुलिस ने बेरहमी से दो दिनों तक हाजत में बंद कर के उसकी बेरहमी से पहले तो पिटाई की फिर आज सुबह जख्मी शख्स को सड़क किनारे लाकर लावारिश की तरह फेंक दिया और वहाँ से चलते बने । बनगांव थानाध्यक्ष संजीव कुमार सहित बनगांव पुलिस की बर्बरता और दादागिरी की इंतहा की इस घटना पर घंटों बबाल हुआ । बनगांव थाना क्षेत्र के वसुदेवा गाँव के रहने वाले संजीव दास को जख्मी हालत में ग्रामीणों ने सदर अस्पताल में भर्ती कराया है जहां उसकी स्थित नाजुक बनी हुई  है । लोगों और परिजनों का कहना है की चोरी,लूटपाट और मारपीट के एक झूठे मामले में पुलिस ने संजीव दास को पहले तो गिरफ्तार करके ले गयी लेकिन बाद में उसकी बेरहमी से पिटाई कर के उसे छोड़ दिया । सदर अस्पताल में हंगामे की सुचना पाकर मौके पर लोगों को समझाने पहुंचे एस.डी.ओ, ए.डी.एम और एस.डी.पी.ओ को आक्रोशित लोगों ने करीब दो घंटे तक एक तरह से बंधक बनाए रखा और उनकी एक न सुनी । स्थिति की गंभीरता को भांप कर आनन-फानन में फिर मौके पर डी.एम और एस.पी पहुंचे जिन्होनें लाख मशक्कत के बाद लोगों को शांत कराने में सफलता पायी । एस.पी अजीत सत्यार्थी ने थानाध्यक्ष संजीव कुमार को तत्काल निलंबित कर दिया है । आज के इस नज़ारे ने यह  जाहिर कर दिया है की यहाँ की पुलिस बर्बर और निरंकुश है जिसके खिलाफ लोगों ने संग्राम का विगुल फूंक दिया है !

सदर अस्पताल सहरसा आज जंग के मैदान में तब्दील होते-होते बच  गया । हांलांकि घंटों यहाँ बबाल हुए और मौके पर शुरू में आये कई  अधिकारियों को यहाँ न केवल पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा बल्कि इन अधिकारियों को यहाँ से दुम दबाकर भाग जाना पडा।आक्रोशित लोगों ने करीब दो घंटे तक इन्हें घेरकर एक तरह से बंधक बनाए रखा । मामला काफी विस्फोटक और यहाँ की तस्वीर काफी भयावह होती लेकिन आज तमाम विरोधी दलों के द्वारा बिहार बंद की वजह से उन लोगों का पूरा ध्यान सहरसा की बंदी में रहा इसलिए किसी का ध्यान इधर नहीं खिंचा वर्ना हम अभी आपको कुछ और ही दिखा रहे होते संजीव दास को बनगांव पुलिस ने बेरहमी और निर्ममता से उसकी पिटाई की है । उसके पुरे शरीर पर गंभीर जख्मों के निशान मौजूद हैं जो पुलिस को यमराज साबित करने में समर्थ हैं । पुलिस की इस काली करतूत को देखने पहले एस.डी.ओ,ए.डी.एम और एस.डी.पी.ओ साहब आये लेकिन लोगों ने इनकी एक न सुनी । इन्हें लोगों ने करीब दो घंटे तक अपनी गिरफ्त में रखा बड़ी मुश्किल से ये लोग अपनी-अपनी गाडी लेकर यहाँ से भागे।फिर ये सभी डी.एम और एस.पी के साथ पुनः यहाँ आये । जख्मी संजीव की हालत काफी नाजुक है । उसके परिजन बताते हैं की पुलिस उसे एक झूठे मामले में पकड़ कर ले गयी और उसकी ऐसी पिटाई की उसका बचना मुश्किल है । पुलिस की बर्बरता की कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती है । पुलिस वालों ने इसे पीट -पीट कर पहले तो अधमरा कर दिया फिर उसे वसुदेवा गाँव के समीप एक सड़क के किनारे लाकर फेंक दिया

डी.एम और एस.पी न केवल मौके पर पहुंचे बल्कि इस मामले को गंभीरता से भी लिया । एस पी ने इस मामले में पहली दृष्टि में बनगांव थानाध्यक्ष संजीव कुमार को दोषी पाते हुए उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया और इस पुरे मामले की जांच का जिम्मा एस.डी.पी.ओ सदर अशोक दास को सौंप दिया । एस.पी ने बताया की कानून हाथ में लेने का अधिकार न तो आम आदमी को है और न ही पुलिस को, उन्होनें बनगांव थानाध्यक्ष को दोषी पाया है और उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया है।
आज सहरसा जलते-जलते बच  गया। अगर पुलिस ने अपना रवैया नहीं बदला तो मधुवनी से बड़ी घटना यहाँ घटित होकर रहेगी।  बीते 29 दिसंबर 2011 को पुलिस और प्रशासन की नादानी से सहरसा में लगातार दो दिनों तक छात्र और पुलिस-प्रशासन के बीच संग्राम छिड़ा था। उस समय भी काफी बरबादी  हुयी थी लेकिन अब उस घटना से बड़ी घटना की आशंका कुलाचें भर रही है। जाहिर तौर पर पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को अपनी आदत और कार्यशैली में बदलाव लाना होगा,तभी ऐसी बड़ी घटनाओं को रोका जा सकेगा।

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