
सरकार ने इन कुम्हारों के लिए आजतक कुछ भी नहीं किया है ! बेबस,लाचार और मजबूर ये कुम्हार आज भी सपरिवार चाक घुमा रहे हैं लेकिन बेमन से की आखिर वे करें भी तो क्या
सहरसा की कुल आबादी करीब सोलह लाख लाख है ! इसमें अगर कुम्हार जाति की बात करें तो इस जाति की आबादी पूरे जिले में करीब 35 हजार की है ! सबसे ज्यादा जिले के महिसरो और मुरली गाँव में इस जाति के लोगों की आबादी है ! सहरसा जिला के कहरा प्रखंड अंतर्गत सुलिन्दाबाद गाँव जहां कुम्हारों के करीब पचहत्तर परिवार रहते हैं ! यूँ तो हर मौसम में इन कुम्हारों के घर चाक घूमते रहते हैं और कोई ना कोई मिट्टी का बर्तन तैयार होता रहता है ! लेकिन दीवाली के समय इनके घर के चाक दिन और रात मिलाकर घंटों घूमते रहते हैं आमलोगों की तरह दीवाली का पर्व इनके लिए भी बड़ा ख़ास होता है ! इस पर्व में मिट्टी के दीये और डिबिए ये बहुतायत में बनाते हैं ! जाहिर सी बात है की कुछ वर्ष पहले तक इन मिट्टी के दीये और डिबिए की काफी मांग थी ! लोग दिवाली में दीये और डिबिए जलाकर अपने घर को रौशन करते थे !
लेकिन आज वक्त बदल चुका है लोगों की आँखें बिजली की चीनी चकमक और झालर से आज ना केवल चौंधिया गयी हैं बल्कि ये साजो सामान दीवाली में उनकी पहली जरुरत बन गयी है ! कुम्हारों के हाथों के बने इन दीये और डिबिए की बिक्री आज के दौर में काफी कम हो गयी है ! हालत यह है की जिन कुम्हारों को दीवाली के मौके पर पूरे साल भर के लिए अच्छी कमाई हो जाती थी वहाँ अब चूल्हे जल पाना मुश्किल हो गया है ! पुश्तैनी कारोबार है बाप-दादों से लेकर वर्तमान पीढ़ी इसी व्यवसाय से पेट पालते रहे हैं ! ऐसे में इनके रोजगार को काफी बड़ा धक्का लगा है पूछने पर बड़े दुखी मन से कहते हैं की क्या करें किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रही है ! सरकार ने भी आजतक उनलोगों के लिए कुछ नहीं किया
है ! पूछने पर बताता है की गरीब है इसलिए पढ़ नहीं सकता ! घर का चूल्हा जलाने के लिए वह चाक चलाता है ! मासूमियत में दिए गए इसके जबाब व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है !
समय के पहिया ने कुम्हारों के चाक की रफ़्तार कम कर दी है ! कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार पर चीनी ब्रांड बिजली के चकमक ने ऐसा हमला किया है की उनका कारोबार अब बन्द होने के कगार पर है ! सरकार ने भी कभी मदद का मजबूत हाथ इनकी तरफ नहीं बढ़ाया ! आलम यह है की कुम्हार परिवार में आज दर्द, टीस और मज़बूरी में पल रहा है ! अगर जल्द इन कुम्हारों के लिए कोई पुख्ता और ठोस पहल नहीं किये गए तो हाथों की एक बड़ी कलाकारी हताशे और अभाव में दम तोड़ देगी !
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