8 नवंबर 2012

गुम हो रहे है कुम्हार के दीये




समय का पहिया आधुनिकता के रंग में रंगकर इतनी तेजी से घूम रहा है, की इसमें कुम्हारों के घूमते चाक किसी भी पल दम तोड़ जायेंगे ! आज कुम्हारों के द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तन और अन्य सामानों की मांग ना केवल बिल्कुल कम हो गयी है, बल्कि वे कुछ पर्व त्योहारों में महज वक्ती जरुरत बनकर ही रह गए हैं ! एक समय था जब कुम्हार जाति के लोग खासकर के दीवाली आने का इन्तजार पूरा साल करते थे ! दीवाली में उनके द्वारा निर्मित छोटे-बड़े दीये,डिबिया और अन्य मिट्टी से निर्मित सामान लोगों की पहली जरुरत थी !पहले तो समृद्ध और समर्थ लोग दीवाली में घी के दीये जलाते थे ! बाद के दिनों में सरसों के तेल से लेकर किरासन तेल से दीये और डिबिए जलाए जाते रहे ! लेकिन अब इसका चलन भी खत्म होने के कगार पर है! जीवन की आपाधापी और अंधदौड़ में लोग अब दीये से किनारा करने लगे हैं ! बाजार में चारों तरफ बिजली के चीनी चकमक और झालर का जाल बिछा है ! दीवाली में दीये की जगह अब लोगों की जरुरत यही बिजली के चीनी चकमक और झालर हो गए हैं.जाहिर सी बात है की लोगों की इस नयी पसंद से कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार को गहरा धक्का लगा है ! दीवाली में लोगों के घर खुशियों के दीये जलाकर इन कुम्हारों के घर में भी धीमी लौ के ही सही लेकिन ख़ुशी के दीए जरुर जलते थे ! आज कुम्हार जाति के लोगों के सामने ना केवल उनके कारोबार को बन्द करने की समस्या खड़ी है बल्कि उनके परिवार कैसे चलेंगे यह  प्रश्न भी सामने खड़ा है !
सरकार ने इन कुम्हारों के लिए आजतक कुछ भी नहीं किया है ! बेबस,लाचार और मजबूर ये कुम्हार आज भी सपरिवार चाक घुमा रहे हैं लेकिन बेमन से की आखिर वे करें भी तो क्या 
सहरसा की कुल आबादी करीब सोलह लाख लाख है ! इसमें अगर कुम्हार जाति की बात करें तो इस जाति की आबादी पूरे जिले में करीब 35 हजार की है ! सबसे ज्यादा जिले के महिसरो और मुरली गाँव में इस जाति के लोगों की आबादी है ! सहरसा जिला के कहरा प्रखंड अंतर्गत सुलिन्दाबाद गाँव जहां कुम्हारों के करीब पचहत्तर परिवार रहते हैं ! यूँ तो हर मौसम में इन कुम्हारों के घर चाक घूमते रहते हैं और कोई ना कोई मिट्टी का बर्तन तैयार होता रहता है ! लेकिन दीवाली के समय इनके घर के चाक दिन और रात मिलाकर घंटों घूमते रहते हैं आमलोगों की तरह दीवाली का पर्व इनके लिए भी बड़ा ख़ास होता है ! इस पर्व में मिट्टी के दीये और डिबिए ये बहुतायत में बनाते हैं ! जाहिर सी बात है की कुछ वर्ष पहले तक इन मिट्टी के दीये और डिबिए की काफी मांग थी ! लोग दिवाली में दीये और डिबिए जलाकर अपने घर को रौशन करते थे ! 
लेकिन आज वक्त बदल चुका है लोगों की आँखें बिजली की चीनी चकमक और झालर से आज ना केवल चौंधिया गयी हैं बल्कि ये साजो सामान दीवाली में उनकी पहली जरुरत बन गयी है ! कुम्हारों के हाथों के बने इन दीये और डिबिए की बिक्री आज के दौर में काफी कम हो गयी है ! हालत यह है की जिन कुम्हारों को दीवाली के मौके पर पूरे साल भर के लिए अच्छी कमाई हो जाती थी वहाँ अब चूल्हे जल पाना मुश्किल हो गया है ! पुश्तैनी कारोबार है बाप-दादों से लेकर वर्तमान पीढ़ी इसी व्यवसाय से पेट पालते रहे हैं ! ऐसे में इनके रोजगार को काफी बड़ा धक्का लगा है पूछने पर बड़े दुखी मन से कहते हैं की क्या करें किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रही है ! सरकार ने भी आजतक उनलोगों के लिए कुछ नहीं किया 
अब जरा इस मासूम बच्चे को देखिये इसकी रगों में कुम्हार का खून दौर रहा है ! और यह बड़ी तेजी से चाक घुमा रहा है ! जिस मासूम के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए वह चाक घुमा रहा है ! उसकी किस्मत का पहिया ऐसा घुमा है की वह यह पहिया घुमाने को विवश 
है !  पूछने पर बताता है की गरीब है इसलिए पढ़ नहीं सकता ! घर का चूल्हा जलाने के लिए वह चाक चलाता है ! मासूमियत में दिए गए इसके जबाब व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है ! 
पूरा बाजार चीनी जुगनू से जगमग है ! बिजली के कारोबारी बड़े साफ़ लहजे में बता रहे हैं की अब मिट्टी से बने दीये के दिन लद गए अब दीवाली में लोग दीये जलाने की जगह चीन निर्मित झालर और चकमक को ज्यादा पसंद कर रहे हैं घी में जलने वाले दीये,अब कहानी भर के लिए रह गए हैं !

समय के पहिया ने कुम्हारों के चाक की रफ़्तार कम कर दी है ! कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार पर चीनी ब्रांड बिजली के चकमक ने ऐसा हमला किया है की उनका कारोबार अब बन्द होने के कगार पर है ! सरकार ने भी कभी मदद का मजबूत हाथ इनकी तरफ नहीं बढ़ाया ! आलम यह है की कुम्हार परिवार में आज दर्द, टीस और मज़बूरी में पल रहा है ! अगर जल्द इन कुम्हारों के लिए कोई पुख्ता और ठोस पहल नहीं किये गए तो हाथों की एक बड़ी कलाकारी हताशे और अभाव में दम तोड़ देगी ! 

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